लोक कला धरती की कला है , और धरती को हम जिस नाम से भी जानते हों पर वह माटी की धरती कहलाती है, और माटी से सम्पूर्ण मानवता की सभ्यता जुडी है , मानव किसी भी प्रदेश में हो या किसी आँचल में रहे, उसके सुख दुःख, उल्लास वेदना, उसकी भावनाएं, उसकी अभिब्यक्ति, उसकी ख़ुशी, चेतना, आंसू, उसकी संस्कृति, और जीवन के बहुत सारे रंग उसकी लोक कथाओं, लोकगीतों और दन्त कथाओं में देखने को मिलती है. इन्ही लोकगीतों और लोककथाओं को प्रतिबिंबित करते हुए "पर्वतीय कला केंद्र" की प्रस्तुति "पहाड़नेकि काथ" दिनांक 01 और 02 दिसंबर 2015 को सांय 7 बजे से 'एल. टी. जी. सभागार, कॉपरनिकस मार्ग, मंडी हाउस, नई दिल्ली 110001' में होगी. तो उत्तराखंड की लोककथाओं और लोकगीतों के साथ शानदार लोकनृत्य देखने के लिए आप सभी सपरिवार सादर आमंत्रित है .
नोट- प्रवेश निशुल्क है पर्वतीय कला केंद्र,
40/8 हिम विहार अपार्टमेंट, पटपरगंज संगीत - भगवत उप्रेती
नई दिल्ली निर्देशक- अमित सक्सेना
फ़ोन-011 - 2273 4840 http://parvatiyakalakendra.blogspot.in/
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